Thanks "गुलज़ारजी"
(written whatever I could gather while listening and typing simultaneously.. ofcourse in multiple attempts NOT written in "google hindi transliteration")
मैं चांद निगल गयी । हो जी मैं चांद निगल गयी दुइया रे
हूं भीतर भीतर आग जलें बात करु तो सेक़ लगे
आजी भीतर भीतर आग जले बात करु तो सेक़ लगें
हो मैं चांद निगल गयी दैया रे अंग पे ऐसे छाले पड़ें
तेज़ का झोंका का करु सी सी करती।
सी सी सी सी करती मैं मरू ज़बाँ पे लागा जि लागा जि रे
ज़बाँ पे लाग लागा रे नमक़ इश्क का| होए मेरे इस्क़ का
बलम से मांगा मांगा रे
बलम से मांगा रे बलम से मांगा मांगा रे
बलम से मांगा रे बलम से मांगा मांगा रे नमक इस्क़ का तेरे इस्क़ का
जबा पे...
हाय रे तेरे इस्क का
जबा पे...
सभी छेडें हैं मुझको सिपाहिए बाँके छमियें
उधारी लेने लगे हैं गली के बनिये बनिये
कोइ तो कवडि तुभी लुटा दे.
आजी थोडी थोडी शहद चटा दे.
आजी तेज़ का तदक क्या करुं सी सी करती मैं मरु ..
आजी .. रातभर छाना रे नमक इस्क का. हाये तेरे इस्क का
रातभर छाना राअतभर छाना राअतभर छाना रे .....
जबां पे लागा लागा रे ...
हो ऐसी भूक लगी जालिम की ..
हो ऐसी भूक लगी जाआलिम की ..
के बासुरीं जैसी बाजी मैं
अरे जो भी कहां उस चंद्रभान ने
फट से हो गयी राजी मैं.
हय कभि अखियों से पीना कभी होठोंसे पीना
कभी अछा लगे मरना कभी मुस्कील लगे जीना
करवट करवट प्यास लगी थी.
आजि बलम कि आहट पास लगी थी .
टेज का झौका का करु सी सी करती मैं मरु...
डलीभर डाला डालाजि रे .......
जबां पे.....
बलम से मांगा मांगा रे....
No comments:
Post a Comment